(फोटो गूगल से साभार) |
वह तमाशबीन नहीं बना रहा
औरों की तरह
उठा और चढ़ गया आसमां पर
बन कर सूरज चमकने लगा
रात भर जहाँ नाउम्मीदी पसरी थी
वहाँ नव ऊर्जा बन बहने लगा
नव उत्साह लिए साँसों में
बागों में महकने लगा
बिना मुश्किलों से डरे
चुनौतियों को हुंकार भरता
हर कदम हर सफर
हर साँस हर डगर
हर प्राण ओज भरता
हर भेदभाव से परे
सहृदय हर किसी से
मानवता का अर्थ गढ़ता
एक पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शक
आदर्श की नव नींव रखता
वो चलता रहा, बस चलता रहा
वो कभी थका नहीं
वो कभी झुका नहीं
क्या कुछ वो गढ़ गया
पर कभी रुका नहीं
यह सूरज वह सूरज नहीं
है अस्त जो हो जाता
यह, वह सूरज है
जो हर दिल में
है सदा उदित रहता
मुस्कुराता है सदा
मुस्कुराएगा जो सदा
शत शत नमन !!
बहुत कम लोग होते हैं जो सदा पोसिटिव रहते हैं जिंदगी में ... कलाम साहब उन्ही में से एक थे ... सूरज की तरह चमकते हुए .... कोटि कोटि प्रणाम ...
जवाब देंहटाएंबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......
जवाब देंहटाएंकशमकश को सुन्दर शब्द दिए है आपने...बेहतरीन काव्यात्मक श्रृंद्धांजलि
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता.... हुत याद आएँगे कलाम सहाब
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएं"यह, वह सूरज है
जवाब देंहटाएंजो हर दिल में
है सदा उदित रहता" - सादर श्रद्धांजलि
प्रशंसनीय