मंगलवार, 28 जुलाई 2015

मुस्कुराएगा जो सदा


(फोटो गूगल से साभार)


वह तमाशबीन नहीं बना रहा 
औरों की तरह 
उठा और चढ़ गया आसमां पर 
बन कर सूरज चमकने लगा 

रात भर जहाँ नाउम्मीदी पसरी थी  
वहाँ नव ऊर्जा बन बहने लगा 
नव उत्साह लिए साँसों में 
बागों में महकने लगा 

बिना मुश्किलों से डरे 
चुनौतियों को हुंकार भरता  
हर कदम  हर सफर 
हर साँस हर डगर 
हर प्राण ओज भरता 

हर भेदभाव से परे 
सहृदय हर किसी से
मानवता का अर्थ गढ़ता 
एक पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शक  
आदर्श की नव नींव रखता 
वो चलता रहा, बस चलता रहा 

वो कभी थका नहीं 
वो कभी झुका नहीं 
क्या कुछ वो गढ़ गया 
पर कभी रुका नहीं 

यह सूरज वह सूरज नहीं 
है अस्त जो हो जाता  
यह, वह सूरज है 
जो हर दिल में
है सदा उदित रहता
मुस्कुराता है सदा 
मुस्कुराएगा जो सदा  


शत शत नमन !!

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कम लोग होते हैं जो सदा पोसिटिव रहते हैं जिंदगी में ... कलाम साहब उन्ही में से एक थे ... सूरज की तरह चमकते हुए .... कोटि कोटि प्रणाम ...

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  2. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......

    जवाब देंहटाएं
  3. कशमकश को सुन्दर शब्द दिए है आपने...बेहतरीन काव्यात्मक श्रृंद्धांजलि

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी कविता.... हुत याद आएँगे कलाम सहाब

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

    जवाब देंहटाएं
  6. "यह, वह सूरज है
    जो हर दिल में
    है सदा उदित रहता" - सादर श्रद्धांजलि

    प्रशंसनीय

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