( फोटो गूगल से साभार ) |
कदम दर कदम
संग चलता है मेरे
तुम्हारा 'आधा मन'
अक्सर हाथ की
आड़ी तिरछी रेखाओं में
ढूंढता हूँ तुम्हारा
बाकी बचा 'आधा मन'
पर हर बार पाता हूँ
कुछ अलग सा
हाँ, बिलकुल अलग …
जैसे कुछ कपोल अरमां
और तल्ख़ धूप में
लिपटा एक टुकड़ा
बारिश का
मेरे माथे की तीन रेखाएँ
आज भी जिक्र छेड़ती हैं तुम्हारा
अक्सर आधी रात को
और आज भी बेवजह
मुस्कुरा देती हैं
तुम्हारे 'आधे मन' की
उस मुस्कुराहट से
तुम्हारा भी 'आधा मन'
कभी पूरा ना हो पाया
हो सके तो ले जाओ
अपना 'आधा मन'
ताकि तुम पूर्ण हो जाओ
या फिर दे जाओ
बाकी बचा 'आधा मन '
ताकि 'हम' पूर्ण हो जाएँ
इसी इंतजार में
प्रतीक्षारत
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
वही .... 'आधा मन' !
सुन्दर। वैसे कौन ले गया आपका आधा मन ?? ;) :P
जवाब देंहटाएंतल्ख़ धूप में
जवाब देंहटाएंलिपटा एक टुकड़ा
बारिश का ... waah!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-06-2015) को "बनाओ अपनी पगडंडी और चुनो मंज़िल" {चर्चा अंक-2007} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यवाद सर !
हटाएंसादर आभार !! :)
पर हर बार पाता हूँ
जवाब देंहटाएंकुछ अलग सा
हाँ, बिलकुल अलग …
क्या खूबसूरत अंदाज़ है. मन को उभरानेवाली एक दिलकश रचना.
बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंपर हर बार पाता हूँ
जवाब देंहटाएंकुछ अलग सा
हाँ, बिलकुल अलग …
जैसे कुछ कपोल अरमां
और तल्ख़ धूप में
लिपटा एक टुकड़ा
बारिश का
....वाह...बहुत ख़ूबसूरत अहसास...लाज़वाब अभिव्यक्ति...
कई बार ये आधा मन ही पूरी जिंदगी बन जाता है ... पर फिर भी रहता आधा ही है ...
जवाब देंहटाएंप्रेम भरी कल्पनाओं से पूरा होता आधा मन ... बहुत ही लाजवाब है ...
सुन्दर शब्द रचना
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