बुधवार, 29 जनवरी 2014

आज नया कुछ गढ़ जाएँगे

(फोटो गूगल से साभार)



कुछ सीमाएँ तुम तोड़ो 
कुछ सीमाएँ मैं तोडूँ  
चलो शून्य को बढ़ जाएँगे 
​​आज नया कुछ गढ़ जाएँगे 

रात की काली चादर हटा दें 
जर्रे जर्रे को बता दें 
प्रणय प्रीत की धुन लिए 
उन्मुक्त हवा सी बह जाएँ 
उच्च गगन की पीड़ा को 
आज धरा को कह जाएंगे 
आज नया कुछ गढ़ जाएँगे 

देख दिखावे की उलझी रस्में 
हम क्यूँ इनमे उलझे जाएं 
बस जो सुंदर और सही है 
हम उनमें बस घुल मिल जाएँ 
वाद विवाद में क्या है पड़ना 
सुखद संवादों में बह जाएंगे 
आज नया कुछ गढ़ जाएँगे 

पीड़ा की अन्तःपीड़ा को 
जाने कौन समझ पाएगा 
झूठी मुस्कानों के बदले 
खुशियाँ कौड़ी बिक जाएगा 
द्वंद्व अंतर्द्वंद्व के चक्रव्यूह को 
क्यूँ ना हम भेद पाएँगे 
आज नया कुछ गढ़ जाएँगे 

कुछ सीमाएँ तुम तोड़ो 
कुछ सीमाएँ मैं तोडूँ  
चलो शून्य को बढ़ जाएँगे 
​​आज नया कुछ गढ़ जाएँगे


9 टिप्‍पणियां:

  1. सकारात्मक सोंच लिए बहुत बेहतरीन रचना..
    :-)

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  2. बहुत सुन्दर भावमय रचना ... प्रेम में सीमाएं अपने आप टूट जाती हैं ...

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  3. कुछ सीमाएँ तुम तोड़ो
    कुछ सीमाएँ मैं तोडूँ
    चलो शून्य को बढ़ जाएँगे
    ​​आज नया कुछ गढ़ जाएँगे

    simayein andhvishvas ki hon to todne mein koi harz nahin .....
    achhi bhavabhiyakti ....

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ सीमाएँ तुम तोड़ो
    कुछ सीमाएँ मैं तोडूँ
    चलो शून्य को बढ़ जाएँगे
    ​​आज नया कुछ गढ़ जाएँगे
    ....वाह...बहुत सुन्दर गीत...

    जवाब देंहटाएं
  5. बस जो सुंदर और सही है
    हम उनमें बस घुल मिल जाएँ
    वाद विवाद में क्या है पड़ना
    सुखद संवादों में बह जाएंगे
    आज नया कुछ गढ़ जाएँगे
    ये नया गढने की बहुत जरूरत है।

    जवाब देंहटाएं
  6. कुछ सीमाएँ तुम तोड़ो
    कुछ सीमाएँ मैं तोडूँ
    चलो शून्य को बढ़ जाएँगे
    ​​आज नया कुछ गढ़ जाएँगे... बहुत सुन्दर भावमय रचना ..

    जवाब देंहटाएं
  7. कुछ सीमाएँ तुम तोड़ो
    कुछ सीमाएँ मैं तोडूँ
    चलो शून्य को बढ़ जाएँगे
    ​​आज नया कुछ गढ़ जाएँगे
    ........ सुन्दर गीत...

    जवाब देंहटाएं

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