रविवार, 5 जनवरी 2014

प्रेम का कभी अंत नहीं




(फोटो गूगल से साभार)


सावन भादो सब भीगा
मन कतरा कतरा भीगा
रात का तनहा आकाश
कभी आधा
तो कभी पूरा चाँद भीगा

मोहन मुरली बन बजा
फूलों की इक सेज सजा
राधिके के आगमन को
यमुना तट पर, बन गीत बजा

शशि ज्यों आ जाता नित
संध्या के आकाश पर
निज मन उदित होता हर रोज
पूर्ण प्रेम की आश पर

अथाह समंदर गहरा जा डूबा
सूरज सा फिर उगने को
प्रेम का कभी अंत नहीं
नहीं रुका कभी रुकने को


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार भाई जी-

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रेम का अंत अनन्त पर भी नहीं .. गमन शाश्वत चलता रहता है ..

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह सुन्दर सामयिक ओजपूर्ण प्रस्तुति
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये....!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. हर चीज का अंत है पर प्रेम ?
    प्रेम का कोई अंत नहीं है
    क्योंकि, प्रेम है अनंत को पाने की अभिलाषा
    सब कुछ उबाऊ बोरिंग है पर प्रेम नित नूतन है !
    सार्थक रचना !

    जवाब देंहटाएं
  5. अथाह समंदर गहरा जा डूबा
    सूरज सा फिर उगने को
    प्रेम का कभी अंत नहीं
    नहीं रुका कभी रुकने को


    sunder abhivyakti ...

    जवाब देंहटाएं

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