(फोटो गूगल से साभार) |
सावन भादो सब भीगा
मन कतरा कतरा भीगा
रात का तनहा आकाश
कभी आधा
तो कभी पूरा चाँद भीगा
मोहन मुरली बन बजा
फूलों की इक सेज सजा
राधिके के आगमन को
यमुना तट पर, बन गीत बजा
शशि ज्यों आ जाता नित
संध्या के आकाश पर
निज मन उदित होता हर रोज
पूर्ण प्रेम की आश पर
अथाह समंदर गहरा जा डूबा
सूरज सा फिर उगने को
प्रेम का कभी अंत नहीं
नहीं रुका कभी रुकने को
मन कतरा कतरा भीगा
रात का तनहा आकाश
कभी आधा
तो कभी पूरा चाँद भीगा
मोहन मुरली बन बजा
फूलों की इक सेज सजा
राधिके के आगमन को
यमुना तट पर, बन गीत बजा
शशि ज्यों आ जाता नित
संध्या के आकाश पर
निज मन उदित होता हर रोज
पूर्ण प्रेम की आश पर
अथाह समंदर गहरा जा डूबा
सूरज सा फिर उगने को
प्रेम का कभी अंत नहीं
नहीं रुका कभी रुकने को
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी-
प्रेम को अनुभव करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रेम का अंत अनन्त पर भी नहीं .. गमन शाश्वत चलता रहता है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावों की प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: नये साल का पहला दिन.सुंदर
वाह सुन्दर सामयिक ओजपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये....!!!
utam_***
जवाब देंहटाएंहर चीज का अंत है पर प्रेम ?
जवाब देंहटाएंप्रेम का कोई अंत नहीं है
क्योंकि, प्रेम है अनंत को पाने की अभिलाषा
सब कुछ उबाऊ बोरिंग है पर प्रेम नित नूतन है !
सार्थक रचना !
अथाह समंदर गहरा जा डूबा
जवाब देंहटाएंसूरज सा फिर उगने को
प्रेम का कभी अंत नहीं
नहीं रुका कभी रुकने को
sunder abhivyakti ...