(फोटो गूगल से साभार) |
हर्फ़ हर्फ़ गुजरो मेरी कविता से
और हर शब्द सोना हो जाए
बस लिख दूँ रौशनी
और रौशन हर इक कोना हो जाए
फड़फड़ाते पन्नों को
ना जाने कौन सी हवा लगी है
तेरी आरजू बन मेरी कविता
अरमां लिए बस उड़ने लगी है
नीला हुआ करता था कभी
जो दावत, आज गुलाबी है
बहके हुए से हैं हर शब्द
शब्द शब्द शराबी है
भीग रहा मेरी कविता का आँगन
मन वृंदावन हो बैठा है
युग बदला है देखो कैसा
राधे तेरे इंतजार में
श्याम अकेला बैठा है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-11-2015) को "हर शख़्स उमीदों का धुवां देख रहा है" (चर्चा-अंक 2167) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर
हटाएंसादर आभार !!
प्रेम में कौन कृष्ण कौन राधे ... सब माया ही है प्रेम की ...
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय रचना.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 2 जून 2016 को में शामिल किया गया है।
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
धन्यवाद संजय जी !!
हटाएंआभार !!
प्रेम का बंधन सबसे प्यारा ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
वेहतरीन अभिव्यक्ति ।भावनात्मक रचना। मुझे अच्छी लगी।
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