(फोटो गूगल से साभार) |
दिख जाते हैं
अक्सर कई फ़कीर
गंदे मैले कुचैले से
कपड़े पहने
राहों पर
कोई गरीब कचड़ा बीनता
कोई मासूम भीख मांगता
गाड़ियों में
गरीबी जैसे शाप बनकर
मिला हो
उनको जीवन में
और साथ ही मिल जाते हैं कई
बुद्धिजीवी लेखक
अपनी किसी नई रचना का
विषय ढूंढते उनमे
और रच जाते हैं कभी कभी
अद्वितीय रचना
मिल जाता है कोई
चित्रकार चित्र उकेरते
गरीबी की
कोई फोटो लेने वाला
फोटो लेते उनकी विवशता का
और जीत जाते हैं पुरस्कार
ले जाते हैं इनाम कई
उगा लेते हैं धन लाखों में
पर वो गरीब
आज भी गरीब है
उनकी तस्वीर हर रोज
ले रहा होता है कोई
रचनाएँ हर रोज
रची जाती है कहीं
पर गरीबों का क्या
वो अभी भी लगे हैं
दो वक्त की रोटी
जुगाड़ने में
जूझते खुद अकेले
अपनी नियति को
संभालने में
सार्थक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंअच्छे दिन आयेंगे !
सावन जगाये अगन !
हाँ...सबके खेलने का यही सबसे अच्छा खिलौना है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंसादर आभार !
पर वो गरीब
जवाब देंहटाएंआज भी गरीब है
उनकी तस्वीर हर रोज
ले रहा होता है कोई
एक सच जिसे बिल्कुल सटीक शब्द दिये हैं आपने ... बहुत ही बढिया प्रस्तुति... आभार
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....
जवाब देंहटाएंमन को छूते शब्द .....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंये आज का कडुवा सच है ...
जवाब देंहटाएंप्रचार का ज़माना है ... बेचो और आगे निकलो ...
उनकी तस्वीर हर रोज
जवाब देंहटाएंले रहा होता है कोई
रचनाएँ हर रोज
रची जाती है कहीं
पर गरीबों का क्या
वो अभी भी लगे हैं
दो वक्त की रोटी
जुगाड़ने में
हकीकत।
शिवनाथ जी आपकी रचना खाली पड़ा कैनवास को कविता मंच पर साँझा किया गया है
जवाब देंहटाएंhttp://kavita-manch.blogspot.in/2014/08/blog-post_21.html
धन्यवाद संजय जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए :)
हटाएंआभार !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, आज 22 अक्तूबर 2015 को में शामिल किया गया है।
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
धन्यवाद संजय जी !!
हटाएंआभार !!
दहशत है फैली हर शहर मोहल्ले मोहल्ले
जवाब देंहटाएंनफरत भरी गलियां देखो इन हुक्मरानों की
.
भाव चवन्नी के बिकती मजबूर काया यहाँ
बेगेरत मरती आत्मा देखो सियासतदानों की
.
तिल तिल मरते कर्ज में डूबे अन्नदाता यहाँ
सुखा है दूर तलक देखो हालत किसानों की
.
धर्म की बड़ी दीवार खड़ी है चारों और यहाँ
जानवर निशब्द है औकात नहीं इन्सानों की
................................................................MJ
.
http://deshwali.blogspot.com/
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