मंगलवार, 24 जून 2025

दिन अभी ढला नहीं, जिंदगी की शाम बाकी है

 


    
                                                        (फोटो गूगल से साभार)



बादलों का गर्जन, नभ विशाल गूँजा है
दिन ने ओढ़ा तमस, मन जा कहीं उलझा है  
खुल रही गांठें अंतस की, एक पूरी एक आधी है  
दिन अभी ढला नहीं, जिंदगी की शाम बाकी है

तेज बहती हवाएँ, दिल का इम्तिहान लेती हैं
जड़ बने पत्थर, भीगते हुए कुछ कहती हैं  
सिसकियाँ बह गयी पानी संग, दर्द जो काफी है  
दिन अभी ढला नहीं, जिंदगी की शाम बाकी है

रिस रिस कर बूंदे, अभी पत्तों से गिर रहीं हैं
धीमी धीमी सी आवाज, कानों में घुल रहीं हैं
तुम मिलो तो शांत हो, अंदर बेचैनी की वादी है
दिन अभी ढला नहीं, जिंदगी की शाम बाकी है

शाम का श्याम भीगता, कहीं बांसुरी बजा रहा है
भटका राही कहीं कोई, एक राह दिखा रहा है  
लौकिक-अलौकिक सब भीगे, नदी किनारे माझी है
दिन अभी ढला नहीं, जिंदगी की शाम बाकी है 

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