बुधवार, 30 अप्रैल 2014

भागता चला जाता हूँ !

 (फोटो गूगल से साभार)



कि आजकल सपने 
कितने डरावने हो गए हैं 
अजीब अजीब आकृतियाँ 
अजीब अजीब परछाईयाँ 
पीछा करती हुई अक्सर 
और 'मैं' भागता हुआ 
पीछा छुड़ाता हुआ 
कादो कीचड़ में पैर सनते हुए 
और फिर भी 
निकलने की जद्दोजहद 
अजीब सा खौफ 
चेहरे पर 
पसीनापस माथा 
साँप बिच्छू 
और कई तरह तरह की चीजें 
सामने दिख जाते हैं 
कभी डर से मूक खड़ा 
तो कभी लड़ने की कोशिश 
सांप की बजाय मैं रेंगता हुआ 
और कभी कभी प्राणहीन सा शरीर
बिलकुल शिथिल 
बस जैसे सौंप दिया हो 
खुद को 
परिस्थिति के हाथों में 
पर ना जाने 
फिर क्या होता है 
पता नहीं 
थोड़ी सी आशा 
जाग उठती है  मन में 
कहीं से तो प्राण आते हैं 
शिथिल हुए पैरों में 
और मैं फिर भागने लगता हूँ 
और भागता चला जाता हूँ !



रविवार, 20 अप्रैल 2014

खाली कर दूँ अपनी पूरी शाम !

(फोटो गूगल से साभार)




जी करता है 
पैमाने में भर लूँ  जाम 
खाली कर दूँ 
अपनी पूरी शाम !

अब कोई बात ना रहे 
कहने को 
कोई बादल ना उमड़े 
बरसने को 

कि काश मैं रोक पाऊँ 
बहते मन को 
दे सकूँ कोई मोड़ नया 
जीवन को 

लौटना मुश्किल 
जो बढ़ गया आगे 
बँधता हूँ, बँधता हूँ 
बाँध रहे कितने धागे 

दिन उतरता है 
रात चढ़ता है 
पर शाम ठहरा रहता है कहीं 
मेरे संग, मेरे अंदर  

आखिर क्यों समझ से परे 
जीवन का यह आयाम !
जी करता है 
पैमाने में भर लूँ जाम  
खाली कर दूँ 
अपनी पूरी शाम !





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