मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

हर्षित हो "विष" पीना है !




कभी कभी
जब अपने अन्दर के
समंदर को मथता हूँ
बहुत कुछ
प्रगट होता है
बहुत कुछ .....

प्रगट होते हैं
कुछ सुख 
कुछ दुःख
कुछ सपने
(जो सपने ही रह गए )
कुछ उम्मीद
कुछ आशाएँ
कुछ प्रेम
कुछ त्याग
कुछ अनसुलझी उलझन

कुछ सच्चाई
(जो कड़वी है)
कुछ अच्छाई
(जो शायद अब नहीं है)

प्रगट होती है कभी कभी
कोई क्रोधाग्नि 
होती है जो बेताब
सब कुछ भस्मीभूत करने को

मिलती है
जागी जागी सी
एक लम्बी नींद
जो जागने से पहले
बहुत कुछ खो चुकी होती है 

बहुत कुछ मिलता है
इस मंथन से
मगर नहीं मिलता है 
तो वो है "अमृत"
हाँ, "विष" जरुर मिलता है

एक समय था
जब विषपान को स्वयं
नीलकंठ आए थे
मगर आज .....
आज इस विष का पान
कौन करेगा,,,, कौन?

यह समुद्र मंथन
सतत चलते रहना है 
और जिस दिन
मिल जाएगा "अमृत"
उस दिन
हर्षित हो "विष" पीना है !
.
.
(वह अमृत जरुर मिलेगा)

14 टिप्‍पणियां:

  1. अमृत के इंतज़ार में ही विष धीरे-धीरे पीना ही पड़ता है.
    भावपूर्ण रचना .

    जवाब देंहटाएं
  2. आशा बनी रहे .... बिश तो हर पल मिलता रहता है ।

    जवाब देंहटाएं
  3. जिस दिन
    मिल जाएगा "अमृत"
    उस दिन
    हर्षित हो "विष" पीना है !
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  4. इस विश पान को स्वयं ही आगे आना होता है ... अमृत तो वैसे भी बचा नहीं होता इन मंथन में ... इमानदारी से लिखी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ... इन्तजार तो इन्तजार ही रहेगा ... बस ... विष पीते जाना है ..
    सुन्दर और दिल से रची गयी पोस्ट ..

    जवाब देंहटाएं
  6. आज के यथार्थ का ठोस मंथन। (कुछ अनसुलझे उलझन) की जगह (कुछ अनसुलझी उलझन) कर दें।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बढ़िया रचना | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    जवाब देंहटाएं
  9. उस दिन
    हर्षित हो "विष" पीना है !
    बहुत खूब .......खुबसूरत खुबसूरत

    जवाब देंहटाएं

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